उत्तराखंड की ऊनी कालीन को अब मिलेगी अंतरराष्ट्रीय पहचान, बस इस बात का है इंतजार

उत्तराखंड में पारंपरिक कला को संरक्षण दिए जाने की कवायद शुरू हो गई है । राज्य के भोटिया जनजाति द्वारा तैयार किए जाने वाले भोटिया दन कालीन अब जल्द ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचाने जाएंगे। उत्तरकाशी की संकल्प सामाजिक संस्था ने भोटिया दन को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन जीआई टैग प्रदान करने के लिए आवेदन किया था जल्द ही जी आई टैग मिलने के बाद इस कालीन के दरवाजे अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए खुल जाएंगे।

राज्य के सीमांत जिलों में उत्तरकाशी, चमोली, पिथौरागढ़ और बागेश्वर में भेड़ पालन भोटिया जनजाति की आजीविका का प्रमुख साधन वर्षों से रहा है। और यह जनजाति भेड़ से ऊन निकालकर कई प्रकार के वस्त्र उत्पाद तैयार करती है जिनमें स्वेटर, शॉल, पंखी, जुराब, मफलर टोपी और भोटिया दन यानी ऊनी कालीन काफी मशहूर हैं। और इन सभी उत्पादों को विशुद्ध रूप से हाथ से तैयार किया जाता है लिहाजा इसे बनाने में काफी समय तो लगता ही है साथ ही मेहनत भी बहुत लगती है और यह काफी असरदार और महंगी भी होती है।

बाजार में इस समय सस्ते कालीन की भरमार है लिहाजा यह दन का बाजार अब सिमट रहा है । इन्हीं सब व्यवस्थाओं के बीच उत्तरकाशी की संकल्प सामाजिक संस्था ने इस दन यानी कालीन की जीआई टैग यानी भौगोलिक संकेत प्रदान करने के लिए 2017 में आवेदन किया था, लिहाजा अब जीआई टैग आवेदन की स्वीकृति अंतिम चरण पर है। अतः इसे जल्द भौगोलिक पहचान मिलना तय है जिसके बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भोटिया जनजाति के लोगों द्वारा तैयार किए जाने वाले भेड़ की ऊन से विशेष कालीन को अलग पहचान मिलेगी।

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क्या है जीआई टैग

दरअसल जी आई टैग अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक ट्रेडमार्क की तरह काम करता है। इस टैग से कृषि, प्राकृतिक या निर्मित उत्पादों की गुणवत्ता और विशिष्टता का एक विशेष पहचान देता है जो कि एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र से संबंधित होते हैं। और भारत में यह टैग भौगोलिक पंजीयक रजिस्ट्रार की ओर से जारी किए जाते हैं।

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