उत्तराखंड: यहां कैंसर के तीन मरीजों को मिला नया जीवन, पढ़िए पूरी खबर
हल्द्वानी: मैक्स इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर केयर वैशाली ने गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रोगों और कैंसर जागरूकता सत्र गुरुवार को हल्द्वानी में आयोजित किया गया। गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर के मामलों में आजकल काफी वृद्धि देखने को मिल रही है। इसी को ध्यान में रखते हुए मैक्स इंस्टिट्यूट ऑफ कैंसर केयर वैशाली ने लोगों को इलाज के नए-नए तरीकों और नई टेक्नोलॉजी के बारे में जानकारी दी। इस पब्लिक अवेयरनेस सेशन को मैक्स इंस्टिट्यूट ऑफ कैंसर केयर वैशाली में गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल एंड एचपीबी सर्जिकल ऑनकोलॉजी के डायरेक्टर डॉक्टर विवेक मंगला ने संबोधित किया।
इसके साथ ही यहां तीन ऐसे मरीज भी मौजूद रहे जो कोलोन कैंसर, लिवर कैंसर और पैनक्रिएटिक ट्यूमर समेत अन्य बीमारियों से ग्रसित रहे हैं। उन्होंने ट्रांस आर्टेरियल कीमो एंबोलाइजेशन के जरिए इलाज के बारे में बताया। TACE और SBRT पर डॉक्टर विवेक मंगला ने बताया, “ट्रांस आर्टेरियल कीमो एंबोलाइजेशन वो प्रक्रिया है जिसमें कीमियोथेरेपी के साथ एंबोलाइजेशकिया जाता है। ये तरीका मुख्यतः लिवर कैंसर के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है।
इसमें मरीज को एंटी-कैंसर दवाइयों के साथ एंबोलिक एजेंट्स के इंजेक्शन दिए जाते हैं जो ब्लड के जरिए सीधे कैंसर की जगह पहुंचते हैं, कैंसर को खत्म करने और कमजोर करने लिए इलाज का ये तरीका बहुत ही कारगर रहता है और लिवर फिर से ठीक से काम करने लगता है और जीवन बेहतर बनता है। लिवर कैंसर के इलाज में TACE/ TARE प्रक्रिया SBRT के साथ या उसके बिना भी कारगर साबित होती है। ये उन मरीजों के लिए होता है जिन्हें सर्जरी नहीं की जाती है। उन्होंने बताया कि2 कैंसर अल्सर के रूप में पेट के अंदर किसी भी अंग से पैदा हो सकते हैं।
शरीर के दूसरों हिस्सों में फैल सकते हैं और पता भी नहीं चल पाता है। इन्हीं बातों के मद्देनजर मैक्स हेल्थकेयर ये कहता है कि लोगों को अपनी बीमारी के प्रति बहुत सचेत रहने की जरूरत है।छोटी से छोटी समस्या होने पर चेकअप्स कराएं, रेगुलर चेकअप्स कराते रहें ताकि बीमारी का शुरुआती स्टेज में ही पता चल सके. देर से बीमारी का पता चलने पर न सिर्फ मरीज के ठीक होने के चांस कम रहते हैं।शरीर के दूसरों हिस्सों में फैल सकते हैं और पता भी नहीं चल पाता है। इन्हीं बातों के मद्देनजर मैक्स हेल्थकेयर ये कहता है कि लोगों को अपनी बीमारी के प्रति बहुत सचेत रहने की जरूरत है।छोटी से छोटी समस्या होने पर चेकअप्स कराएं, रेगुलर चेकअप्स कराते रहें ताकि बीमारी का शुरुआती स्टेज में ही पता चल सके. देर से बीमारी का पता चलने पर न सिर्फ मरीज के ठीक होने के चांस कम रहते हैं।