उत्तराखंड: देवभूमि के इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ हुए बाघ के रूप में प्रकट। ये है विशेषता!
बागनाथ मंदिर (Bagnath Temple) भारत के उत्तराखण्ड के बागेश्वर ज़िले के बागेश्वर तीर्थस्थान में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर है। यह उत्तर भारत में एकमात्र प्राचीन शिव मंदिर है जो दक्षिण मुखी है, जिसमें शिव शक्ति की जलहरी पूर्व दिशा को है। यहाँ शिव पार्वती एक साथ स्वयंभू रूप में जलहरी के मध्य विद्यमान हैं। यह बागेश्वर ज़िले का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है और ज़िले का नाम भी इसी मंदिर के नाम पर पड़ा है। यह सरयू नदी और गोमती नदी एवं सरस्वती (अदृश्य नदी) के संगम पर बागेश्वर नगर में स्थित है।
देवभूमि उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में बागनाथ एक पौराणिक मंदिर है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। चंद वंश के राजाओं का बागनाथ मंदिर से अटूट रिश्ता रहा
बागनाथ मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में हुआ था। जबकि मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण पंद्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी में चंद वंश के राजा लक्ष्मी चंद ने कराया था। मंदिर की मूर्तियां पुरातात्विक महत्व की हैं।
मूर्तियां सातवीं से लेकर 16 वीं शताब्दी के बीच की हैं। बागनाथ मंदिर में महेश्वर, उमा, पार्वती, महिसासुर मर्दिनी की त्रिमुखी और चतुर्मुखी मूर्तियां, शिवलिंग, गणेश, विष्णु, सूर्य सप्वमातृका एवं शाश्वतावतार की प्रतिमाएं शामिल हैं।
व्याघ्रेश्वर से बना बागेश्वर
व्याघ्रेश्वर यानी बागनाथ के नाम से ही बागेश्वर जिले का नाम पड़ा। बागनाथ मंदिर के पास ही सरयू और गोमती नदी का संगम है। पर्वतराज हिमालय की गोद में गोमती-सरयू नदी और विलुप्त सरस्वती के संगम पर स्थित स्थल मार्कंडेय ऋषि की तपोभूमि के नाम से जाना जाता है।
बाघ के रूप में प्रकट हुए शिव
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव यहां बाघ रूप में प्रकट हुए थे, इसलिए इसे व्याघ्रेश्वर नाम से जाना गया। कालातंर में यही नाम बागेश्वर हो गया। भगवान शिव के व्याघ्रेश्वर रूप का प्रतीक देवालय यहां स्थापित है। जिसे भव्य रूप दिया जा रहा है।
शिव के गण चंडीश ने बसाया
शिव पुराण के मानस खंड के अनुसार इस नगर को शिव के गण चंडीश ने शिवजी की इच्छा के अनुसार बसाया था। इस स्थान को उत्तर की काशी के नाम से भी जाना जाता है। पहले मंदिर बहुत छोटा था। चंद वंश के राजा लक्ष्मी चंद ने मंदिर को भव्य रूप दिया।
शिव बने बाघ और पार्वती गाय
पुराण के अनुसार अनादिकाल में मुनि वशिष्ठ अपने कठोर तपबल से ब्रह्मा के कमंडल से निकली मां सरयू को धरती पर ला रहे थे। ब्रह्मकपाली पत्थर के पास ऋषि मार्कंडेय तपस्या में लीन थे। वशिष्ठ को ऋषि मार्कण्डेय की तपस्या भंग होने का डर सताने लगा। सरयू का जल इकट्ठा होने लगा। सरयू आगे नहीं बढ़ सकी। मुनि वशिष्ठ ने शिव की आराधना की।
शिवजी ने बाघ और पार्वती को गाय का रूप रखा। ऋषि मार्कंडेय तपस्या में लीन थे। गाय के रंभाने से मार्कंडेय मुनि की आंखें खुली, व्याघ्र से गाय को मुक्त कराने के लिए दौड़े तो व्याघ्र ने शिव और गाय ने पार्वती का रूप धारण कर लिया। इसके बाद मां पार्वती और भगवान शिव ने मार्कण्डेय ऋषि को इच्छित वर दिया और मुनि वशिष्ठ को आशीर्वाद। जिसके बाद सरयू आगे बढ़ गईं।
ऐसे करें पूजा
बागनाथ मंदिर में मुख्य रूप से बेलपत्र से पूजा होती है। कुमकुम, चंदन, और बताशे चढ़ाने की भी परंपरा है। खीर और खिचड़ी का भोग भी बागनाथ मंदिर में लगता है। रावल समाज के लोग मुख्य पुजारी हैं। अनुष्ठान कराने वाले पुरोहित चौरासी के पांडे थे, बाद में चौरासी के जोशी लोगों को यह काम सौंप दिया।
नि.संतान को मिली है संतान
बागनाथ मंदिर में उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देशभर के भक्त पहुंचते हैं। मान्यता है कि यहां के दर्शन करने से सब दुख-दर्द दूर हो जाते हैं। निसंतानों को संतान की प्राप्ति होती है।
कैसे पहुंचे बागनाथ मंदिर
देहरादून से बागेश्वर की दूरी लगभग 470 किमी है। देश की राजधानी दिल्ली से 502 किमी। नजदीकी रेलवे स्टेशन हल्द्वानी, काठगोदाम, रामनगर और टनकपुर हैं। इन जगहों से बस, टैक्सी से यात्रा कर बागेश्वर पहुंचा जा सकता है।