उत्तराखंड- ये है पहाड़ की महिला, लॉकडाउन में बंजर भूमि को अपने बूते आबाद कर दिखाया

Champawat News- कोरोना काल भले ही लोगों के लिए चुनौती बन कर आया, लेकिन इस चुनौती के बीच कई ऐसे लोग उभर कर आए, जिन्होंने अपने आप को साबित भी कर दिखाया। ऐसा ही कुछ पहाड़ की एक महिला ने किया जिन्होंने अपनी बंजर भूमि को अपने पसीने और परिश्रम से आबाद कर फिर से सोना उगाने वाली धरती बना डाला। उत्तराखंड के चंपावत जिले के दूरस्थ गांव की इस महिला ने आज बंजर जमीन में आबाद करने के बाद आलू, शिमला मिर्च, गोभी, बैगन, भिंडी, टमाटर की फसल लहलहा कर अन्य लोगों को भी प्रेरणा दी है।

मूल रूप से त्यारकूड़ा गांव की 41 वर्ष की महिला कविता तिवारी चंपावत बाजार में अपने पति के साथ रहती है। जहां वह अपने पति प्रकाश तिवारी की मिठाई की दुकान में हाथ बटाती थी, 2020 में मार्च में एक ऐसी महामारी ने जन्म लिया कि जिसने सबके रास्ते बंद कर दिए जैसे ही कोविड-19 को लेकर लॉकडाउन लगा तो कविता ने अपने दुकान के पास पड़ी बंजर जमीन को आबाद करने की ठानी। उन्होंने 2 महीने के कठिन परिश्रम से सुबह-शाम अकेले कुदाल से जमीन खोदकर पांच खेत तैयार किए और उन्हें सब्जी लगाई अनुभव बड़ा तो उन्होंने अपनी 20 नाली जमीन को आबाद करने का मन बनाया और 1 पावर टिलर खरीद लिया।

जिसके बाद कविता ने पीछे मुड़कर नहीं देखा उन्होंने इस साल जनवरी तक 8 नाली बंजर भूमि को हरी-भरी बना दिया और उसमें सब्जी लगाई और उनका यह क्रम लगातार बड़ा जून के पहले पखवाड़े तक उन्होंने अपनी 20 नाली जर जमीन को जुताई कर पूरी तरह से बात कर लिया जिसमें 10 नाली में उन्होंने आलू, शिमला मिर्च, गोभी, बैगन, तुरई, भिंडी, धनिया, चना, मूंगफली और चुकंदर की खेती की जबकि अभी दूसरे सीजन में कविता की सारी सब्जियां तैयार हो रही हैं अब तक वह 5 कुंटल आलू की पैदावार ले चुकी है जबकि 3 कुंटल आलू की खुदाई अभी की जानी है। कविता तिवारी के इस परिश्रम और उसके फल को देखकर वह पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय हैं और उनको देखने के बाद कई लोगों ने अपने घर के आस-पास खाली जमीन पर भी किचन गार्डन तैयार करना शुरू कर दिया है।

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कविता के परिश्रम और संघर्ष ने न सिर्फ दूसरे लोगों के लिए रास्ता खुला है बल्कि लोग इस बात को अच्छी तरह समझने लगे हैं कि यह वही जमीन है जो अब तक कुछ नहीं देती थी और आज सोना उगल रही है।

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