उत्तराखण्ड: भारत के इस कवि की जन्मस्थली है कौसानी की खूबसूरत वादियाँ , जानिए कौन हैं

Uttarakhand News:उत्तराखण्ड में कुमायूँ की पहाड़ियों पर बसे कौसानी गांव में, जहाँ उनका बचपन बीता था, वहां का उनका घर आज ‘सुमित्रा नंदन पंत साहित्यिक वीथिका’ नामक संग्रहालय बन चुका है। जी हां आज हम बात कर रहें है महान कवि सुमित्रा नंदन पंत जी की।

इस संग्रहालय में उनके कपड़े, चश्मा, कलम आदि व्यक्तिगत वस्तुएं सुरक्षित रखी गई हैं। संग्रहालय में उनको मिले ज्ञानपीठ पुरस्कार का प्रशस्तिपत्र, हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा मिला साहित्य वाचस्पति का प्रशस्तिपत्र भी मौजूद है। साथ ही उनकी रचनाएं लोकायतन, आस्था आदि कविता संग्रह की पांडुलिपियां भी सुरक्षित रखी हैं। कालाकांकर के कुंवर सुरेश सिंह और हरिवंश राय बच्चन से किये गये उनके पत्र व्यवहार की प्रतिलिपियां भी यहां मौजूद हैं।

संग्रहालय में उनकी स्मृति में प्रत्येक वर्ष पंत व्याख्यान माला का आयोजन होता है। यहाँ से ‘सुमित्रानंदन पंत व्यक्तित्व और कृतित्व’ नामक पुस्तक भी प्रकाशित की गई है। उनके नाम पर इलाहाबाद शहर में स्थित हाथी पार्क का नाम ‘सुमित्रानंदन पंत बाल उद्यान’ कर दिया गया है।

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हिमालय की शांत वादियों के बीच प्रकृति का सजीव चित्रण करने वाले कवि हैं सुमित्रा नंदन पन्त, जिनका काव्य साहित्य प्रेमियों के साथ ही प्रकृति प्रेमियों को खासा पसंद आता है। यहां तक का उनका घर अब पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता है। 28 दिसंबर को उनकी पुण्यतिथि भी होती है। इस दिन साहित्य प्रेमियों का खासा जमावड़ा होता है उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए ।

प्रकृति की शांत वादियां साहित्य प्रेमियों को बहुत पसंद आती हैं। यहां की नीरवता उन्हें लेखन को प्रेरित करती है। प्रकृति उनके शांत मन में विचारों का बीजारोपण करती है। इसके बाद वह कहानी, काव्य दुनिया के सामने आता है। इसी प्रकार से हिमालय की शांत वादियों के बीच प्रकृति का सजीव चित्रण करने वाले कवि हैं सुमित्रा नंदन पंत जिनके काव्य साहित्य के कहने ही क्या ।

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प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म कौसानी में चाय बागान के व्यवस्थापक पंडित गंगा दत्त पंत के घर 20 मई 1900 में हुआ। जन्म के करीब छह घंटे बाद ही उनकी माता सरस्वती देवी का स्वर्गवास हो गया। माता के स्नेह से वंचित सुमित्रानंदन पंत के काव्य में मां की पुनीत स्मृति बिखरी हुई मिलती है। माता के निधन के बाद शिशु सुमित्रानंदन पंत की दीर्घायु की कामना उनके पिता गंगा दत्त पंत ने की। उन्हें एक गोस्वामी हरगिरि बाबा को सौंप दिया। बाबा हरगिरि ने उनका नाम गुसाई दत्त पंत रख दिया। प्रारंभिक शिक्षा कौसानी के वर्नाक्यूलर स्कूल में होने के बाद वह चौथी कक्षा में प्रवेश के लिए अल्मोड़ा चले गए। विलक्षण प्रतिभा के धनी सुमित्रानंदन पंत को नौ साल की आयु में अमरकोश, मेघदूत, चाणक्य नीति आदि ग्रंथों के अनेक श्लोकों का ज्ञान हो गया था। 1918 में जीआइसी अल्मोड़ा से नवीं कक्षा पास करने के बाद आगे की शिक्षा के लिए उन्हें बनारस भेजा गया।

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सुमित्रानंदन पंत ने छायावाद, प्रगतिवाद और नव चेतनावाद की तीन प्रमुख धाराओं के अंतर्गत साहित्यिक रचनाएं की। 1960 में कला और बूढ़ा चांद की रचना में उन्हें साहित्य अकादमी और 1969 में चिदंबरा पर भारतीय ज्ञान पीठ पुरस्कार मिला। उन्होंने आजीवन विवाह नहीं किया। 28 दिसंबर 1977 को इलाहाबाद में उनका निधन हो गया।

यूके पॉजिटिव न्यूज़ की ओर से इस महान कवि को शत शत श्रद्धांजलि।