उत्तराखंड: अनोखा है उत्तराखंड का यह शिव मंदिर, पांडवों से हैं संबंध, जानिए इसके बारे में

Uttarakhand News : हिमालय की वादियों में बसे गढ़वाल में यूं तो मानव बस्तियों से ज्यादा देवी-देवताओं के स्थान और मंदिर बने हुए हैं मगर कुछ देवताओं के स्थान इतने घनघोर जंगलो में स्थित हैं कि वहां जाने के लिए भी विशेष साहस की जरूरत पड़ती है। ऐसा ही एक मंदिर है बिनसर महादेव का मंदिर। यह पौड़ी गढ़वाल के थैलीसैण में चौथान ब्लॉक में पड़ता है। समुद्र तल से 2,480 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर थैलीसैण से 22 किलोमीटर की दूरी पर है।

यह भगवान महादेव के मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है। माना जाता है कि इस मंदिर को महाराजा पृथ्वी ने अपने पिता बिंदु की याद में बनवाया था। यही वजह है कि इसे बिंदेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि पांडवों ने यहां पर अपना अज्ञातवास का समय गुजारा था। यहां पर भीम घट नाम की एक शिला आज भी है। बिनसर महादेव का मंदिर अपनी अलौकिक सुंदरता के लिए जाना जाता है। यह प्राचीन शिल्पकला का अद्भुत नमूना है।

यहां मीलों दूर तक कोई बस्ती नहीं। यहां से हिमालय की त्रिशूल नाम की श्रृंखला का बहुत शानदार नजारा देखा जा सकता है। यहां पर गढ़वाल के देवताओं की ब्रह्म डूंगी नामक बहुत बड़ी पत्थर की शिला है और घने जंगल में देवदार के विशालकाय पेड़ हैं। यह इलाका दूधा तोली पर्वत क्षेत्र में आता है। यहीं से पूर्वी नयार, पश्चिमी नयार और राम गंगा नदी बनती हैं।

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यहां खुद मंदिर के भीतर स्वत: स्फूर्त जलधारा बहती रहती है। यह इतने घने जंगल में स्थित है कि प्राचीन समय में यहां जब सड़क की सुविधा नहीं थी तो कदम-कदम पर जंगली जानवरों का भय रहता था। मंदिर तक पहुंचने के लिए पहले गाड़ी से पीठसैण तक जाना होता है। यहां से 12 किलोमीटर पैदल यात्रा है, जो खड़ी चढ़ाई न होकर सधी हुई है। यह गढ़वाल-कुमाऊं क्षेत्र के केंद्र में है।

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दीपावली के बाद शुरू होती है यात्रा –

पुराने समय में यहां दर्शन करने जब लोग जाते थे तो उसे जात्रा ( यात्रा) कहा जाता था। यह दीपावली के 11 दिन बाद शुरू होती है। लोग अपने-अपने इलाकों से पैदल चलकर यहां पहुंचते हैं। पैदल यात्रा के समय महिलाएं गढ़वाली लोकगीत बौ सुरैला (झुमैलो की तरह का लोकगीत) गाते हुए चलती हैं।

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यहां पूजा दिन से लेकर रात भर चलती है। रातभर देवताओं का नाच होता है। लोग यहां पर बैल यानी नंदी दान करते हैं। रातभर पूजा के बाद अगले दिन सुबह पूर्णमासी स्नान के बाद लोग वापसी करते हैं।